रविवार, 7 मार्च 2010

नारी मुक्ति के १०० वर्ष के संघर्ष को सलाम

नारी मुक्ति! नारी विमर्श !ढेर सारे सवाल !ढेर सारे नजरिये !ढेर सारी शंकाए !ढेर सारीआपत्तियां और फतवे !

परन्तु नारियो के मन का नारी मुक्ति का सपना , सभ्यता के विकास से लेकर अब तक सारे बन्धनों से आजाद होने का सपना !जो आज से १०० वर्ष पूर्व पहले शुरू हुआ था , ही है नारी मुक्ति !

मात्र स्त्री को संसृति में मनुष्य मनवाने की जद्दोजहद !जिससे सभ्यता के विकास से लेकर अब तक वो वंचित है ,उसे आवश्यकता है आज भी निजी स्तर पर भौतिक स्पेस की ,तो पारस्परिक स्तर पर सम्मान और भावनात्मक सहयोग कीयह संघर्ष है ,स्त्री की मानवीय अस्मिता और पहचान को एक पहचान देने का



सभ्यता के विकास से ही उसे रसोई में कैद कर दिया गया एंगेल्स अपनी रचना origin of spicies में लिखते है की जब स्त्री आदिवासी सभ्यता में गर्भवती होती तो उसे आग को जलाये रखने का कार्य सौप दियाजाता ,क्यों की वो उस वक्त शिकार के लिए जाने में असमर्थ होती और आग को जलाये रखने के लिए भी एक व्यक्ति की आवश्कता होती थी ,बस यहीं से गर्भवती के मांस पकाने से शरू हुआ
सिलसिला आज तक जारी है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें