रविवार, 7 मार्च 2010

नारी मुक्ति के १०० वर्ष के संघर्ष को सलाम

नारी मुक्ति! नारी विमर्श !ढेर सारे सवाल !ढेर सारे नजरिये !ढेर सारी शंकाए !ढेर सारीआपत्तियां और फतवे !

परन्तु नारियो के मन का नारी मुक्ति का सपना , सभ्यता के विकास से लेकर अब तक सारे बन्धनों से आजाद होने का सपना !जो आज से १०० वर्ष पूर्व पहले शुरू हुआ था , ही है नारी मुक्ति !

मात्र स्त्री को संसृति में मनुष्य मनवाने की जद्दोजहद !जिससे सभ्यता के विकास से लेकर अब तक वो वंचित है ,उसे आवश्यकता है आज भी निजी स्तर पर भौतिक स्पेस की ,तो पारस्परिक स्तर पर सम्मान और भावनात्मक सहयोग कीयह संघर्ष है ,स्त्री की मानवीय अस्मिता और पहचान को एक पहचान देने का



सभ्यता के विकास से ही उसे रसोई में कैद कर दिया गया एंगेल्स अपनी रचना origin of spicies में लिखते है की जब स्त्री आदिवासी सभ्यता में गर्भवती होती तो उसे आग को जलाये रखने का कार्य सौप दियाजाता ,क्यों की वो उस वक्त शिकार के लिए जाने में असमर्थ होती और आग को जलाये रखने के लिए भी एक व्यक्ति की आवश्कता होती थी ,बस यहीं से गर्भवती के मांस पकाने से शरू हुआ
सिलसिला आज तक जारी है

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

"बेटी होने का डर"

बचपन में तो ,
कभी एहसास ही न हुआ ,बेटी होने का डर
पिता जी कहा करते थे अक्सर
तू मेरा बेटा नही बेटी ही है ,मगर उनसे कुछ अलग ,
जो डर जाती है समाज से ,अंधी परम्पराओं से ,पुरुष वादी रुढीवादिताओं से ,
तुझे सिर्फ आगे बढना है
इन सब बातों को पीछे छोड़ कर ,
आत्मविश्वास से मंजिल की तरफ ,
उगते सूरज को सभी सलाम करते है
तुझे भी सलाम किया जायेगा एक दिन
पर जवानी की दहलीज पर बढते ही
दहलीज से लगाकर कालेज तक
सताने लगा बेटी होने का डर
प्रतिबंधित होने लगे कपडे
मुश्किल होने लगा निकलना
लोग फब्तियां कसते ,हर गैजेट के इस्तेमाल पर
पिता जी से भी शिकायत करते अक्सर
शायद उन सबको था बेटी के बिगड़ने का डर
मुझे सामना करना पड़ता लोगो की गन्दी निगाहों का ,
भीड़ में तो और भी सताता
मुझे बेटी होने का डर
छेड़खानी ,फब्ती और सीटियाँ
ये तो सब अब आदत बन गयी थी
पहले पहल मेरा बेटी होना
और अब मेरी सुन्दरता ही मेरी दुश्मन बन गयी थी ,
अकेले में ,अंधरे में
सताता मुझे वो डर
जो अख़बारों में पढ़ा करते थे अक्सर (बलात्कार)
पिता जी ढाढस बंधाते,
नौकरी शादी के बाद ठीक हो जायेगा सब कुछ
वो ये कहते थे इसलिए शायद
उन्हें एहसास न था
बेटी होने का डर
ससुराल से लगाकर नौकरी तक
सिलसिला वाही चल रहा था अब तक
पर लोग अब दूर से नही
वाही बाते पास आ के कहते थे
लोग सिमित थे अब भी मेर बेटी होने तक
मुझे लगता है अंतिम साँस तक
सताता रहता है
"बेटी होने का डर "
साथियों
खुशामदीद,खैरमकतम,इस्तकबाल, सुस्वागतम,& most welcome
मै आपका दोस्त ,आपका साथी ,आपका हमनवा ,हमदम ,और संघर्षो में हमसफ़र ,जीवन की हर लड़ाई साथ लड़ने वाला यानि कामरेड सुधांशु आप लोगो से रूबरू हु youth-e-azam कके बहाने ~
बचपन से ही दुनिया को समझने की चाहत ,नौजवानी में दुनिया में परिवर्तन (क्रांति) की जरुरत में त्रब्दिल हो गयी !भगत सिंह ,चेग्वेरा ,कामरेड चरुमजुमदार,कामरेड चंद्रशेखर की अदुरी ख्वाहिशों ने इस जरुरत को जूनून में तब्दील क्र दिया ,भलेही वह शहीद हो गए पर नौजवानों के जज्बातों में आज भी जिन्दा है और तब तक जिन्दा रहेंगे जब तक इनके सपनो को मंजिल न मिल जाये अर्थात
"मानव द्वारा मानवके शोषण की सभी प्रकार की संस्कृतियों का अंत "
इन सपनो को परवाज देने के बिच ढेर सारीबाते ,ढेर सारेसवाल और ढेर सारे जज्बात जेहन में उठते है ,उन्हें बाटने के लिए मै सुधांशु आप लोगो से रूबरू हूँ youth-e-azam के जरिये !
जहाँ सिर्फ क्रांति की मशाल ही नही जीवन के और भी रंग इस कैनवास पर बिखेरनी की कोशिश करूँगा,इन्ही ढेर बातों के साथ
क्रन्तिकारी अभिवादन
इन्कलाब जिंदाबाद
क्रन्तिकारी विरासत जिंदाबाद